यूँ ही बस इधर-उधर विचरना मन का
Posted by
Dr. Shreesh K. Pathak
on गुरुवार, 26 नवंबर 2009
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डायरी के पन्नों में क्या कुछ आ जाता है..कई बार उसकी कोई खास वज़ह नहीं होती, यूँ ही बस इधर-उधर विचरना मन का...कोई सन्दर्भ- प्रसंग नहीं..बिलकुल ही उन्मुक्त....उनमे से कुछ आपके समक्ष...
किस्मत से मै भिखारी हूँ
और किस्मत से ही मुझे
भीख मिलती है. वरना
'आगे बढ़ो' की सीख मिलती है..!!!
सिद्धांत एक ऐसा पुरुष है, जिसे कभी भी एक पतिव्रता नहीं मिलती..!!!
"जान लेकर करता है
खामोशी की शिकायत
दर्द की बात लिखता है
दर्द देने वाला.."
४. "ख़ता तब से शुरू हो गयी बेइंतिहा
आजमाना जबसे जनाब ने शुरू किया.."
देखें; 'श्रीश उवाच' पर- कि;
चित्र साभार:गूगल
17 comments:
आपके मन का विचरन बहुत सटीक है
"....जब स्वयं की यायावरी वृत्ति जगी तो पाया खुद को अरावली की पहाड़ियों के बीच अठखेलियाँ करते हुए..जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय, दिल्ली..अभी शोधरत हूँ यहाँ शायद किसी नए फलसफे के लिए... "
श्रीश जी पहली बार नजर आपके इन उपरोक्त शब्दों पर गई, पिछले कुछ चंद समय में जहां तक मैं आपको समझ पाया, पढने की कोशिश की, नितांत ही बहुत उत्तम विचारों के युवा हो ! बस एक निवेदन है कि जेनयु की परम्परा और इतिहास के मुताविक अपने बिचारो को ज्यादा "लाल " मत बनने देना ! मैं यह नहीं कह रहा कि लाल बन्ना बुरा है, उसकी भी बहुत सी अच्छाईयां थी, मगर अब उनका कोई ख़ास महत्व धरातल पर नजर नहीं आता ! मेरे शब्द अच्छे न लगे तो क्षमा ! कविता बहुत सुन्दर और सार गर्भित है !
"जान लेकर करता है
खामोशी की शिकायत
दर्द की बात लिखता है
दर्द देने वाला..
-आह!! क्या बात है भई!!!
'' ख़ता तब से शुरू हो गयी बेइंतिहा
आजमाना जबसे जनाब ने शुरू किया.."
.... हर एक बार यही बात सताती है तुम्हे ?
जय मुक्तकिया ...
आदरणीय गोदियाल साहब आशीर्वाद दीजिये !! और निश्चिंत रहिये..वैसे ऐसा भी जे.एन.यू. लाल नहीं. ये एक बात बस जम सी गयी है. इस पर कभी विस्तार से लिखूंगा...!
आभार..!!!
हर कोई आगे जाओ आगे जाओ कहता है कितना आगे जायें ?
जान लेकर करता है
खामोशी की शिकायत
दर्द की बात लिखता है
दर्द देने वाला.."
श्रीश जी बहुत सही बात कही है सुन्दर और सार्गर्भित रचना है देर से आयी माफी चाहती हूँ शुभकामनायें
भई आपकी डायरी के बारे मे देख कर तो लगता है कि ब्लॉगिंग बहुत पहले ही शुरू कर चुके थे आप..पेपर पर..
हाँ किस्मत की जरूरत भिखारी से ज्यादा किसी को नही होती है..ऐसा मेरा मानना है..और मुफ़्त मे तो ’सीख’ भी मिल जाय तो बुरा नहीं...और इतिहास बताता है कि अक्सर एकपत्नीव्रती लोगों को ही पतिव्रता पत्नी नही मिलती..फिर फ़टीचर सिद्धांत को तो शादी के ही लाले पड़ जाते हैं..आज के जमाने मे..तो पतिव्रता स्त्री बस उसकी बहन हो सकती है..बस !!..आपकी बाद की दोनो प्रविष्टियाँ किन्ही खास क्षणों की उससे भी खास अनु्भूतियों की उपज लगती हैं..सो कमेंट नही कर सकता.. :-)
श्रीश
दर्द देने वाले मुखर और पाने वाले अक्सर मौन हो जाते हैं .
thanks
किस्मत से मै भिखारी हूँ
और किस्मत से ही मुझे
भीख मिलती है. वरना
'आगे बढ़ो' की सीख मिलती है..!!!
Kya baat hai..khoobsoorat rachna aur khayalaat!
Adbhut Bhav.
""जान लेकर करता है
खामोशी की शिकायत
दर्द की बात लिखता है
दर्द देने वाला.."
आ...हा...क्या कह गए श्रीश जी ....!!
किस्मत से मैं भिखारी .......we call it free will ...........देवताओ से कुछ अलग,इंसान की प्रवर्ति
wordpress से blogspot पर आया हूँ एक रचना के साथ...पढ़े और टिपण्णी दे !!!
achha vicharan hai... usse bhi achhi lagi "aage badho" kee seekh...
अरे श्रीश भई नववर्ष पर नयी दैनिंदिनी नही खरीदी क्या..कितना लम्बा वक्त हो गया..या दैनिंदिनी के बाजार मे डिस्काउंट रेट पर जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं :-)
सही कहा.
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