{आजकल खासा व्यस्त हूँ, और शायद आगे भी रहने वाला हूँ. चाहकर भी मित्रों की ब्लॉग-प्रविष्टियाँ पढ़ नहीं पा रहा हूँ. एहसास है कि क्या खो रहा हूँ...कुछ लिख भी नहीं पा रहा हूँ. पर जल्दी ही सबकुछ व्यवस्थित करने की कोशिश करूँगा. Ph.D. की synopsis का ड्राफ्ट तैयार
करते हुए एक छोटी सी कविता सूझ गयी तो जल्दी में इसे आप सभी के समक्ष रख रहा हूँ... }
एक अध्यापक कहते हैं;
'शब्दों' के एक अपने
निश्चित अर्थ होते ही हैं, और
उनका एक निश्चित प्रभाव होता ही है...|
पर, एक वक्ता कहता है;
'शब्दों' का अपना अर्थ
इतना महत्व नहीं रखता,
वक्ता उसमे मनचाहा
अर्थ डाल देता है...
सोचता हूँ; शब्द मेरी माँ, जैसे हैं..
उनका हमेशा एक निश्चित
मंतव्य होता है, जब वो हाथ लगा,
सहलाते हुए समझाती हैं, पर मै...
उन मर्यादाओं में मनचाही
उच्छृंखलताएँ कर ही
लिया करता हूँ...|
यकीनन, शब्द मेरी माँ जैसे हैं...!!!
(चित्र साभार: गूगल)
14 comments:
सोचता हूँ; शब्द मेरी माँ, जैसे हैं..
उनका हमेशा एक निश्चित
मंतव्य होता है, जब वो हाथ लगा,
सहलाते हुए समझती हैं, पर मै...
उन मर्यादाओं में मनचाही
उच्छृंखलताएँ कर ही
लिया करता हूँ...|
बहुत सुन्दर श्रीश जी , इक्का-दुक्का छोटी छोटी टंकण गलतिया है, उन्हें सुधार ले !
सुन्दर अभिव्यक्ति!
"'शब्दों' का अपना अर्थ
इतना महत्व नहीं रखता,
वक्ता उसमे मनचाहा
अर्थ दाल देता है... "
इस सन्दर्भ में दो वाक्यांशः
१. सही शब्दों का प्रयोग
२. शब्दों का सही प्रयोग
बहुत शानदार रचना..सबका अपना अपना नजरिया है।
युवा सोच युवा खयालात
खुली खिड़की
फिल्मी हलचल
बिल्कुल सही कहा आपने, शब्दो के अपने निश्वित अर्थ तो होते ही है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। सुन्दर रचना । बहुत-बहुत बधाई
हिंदी कविता... बहुत कम पढने और देखने को मिल रहे हैं... आहा ! अच्छे अर्थों से क्या खूब जोड़ा है आपने...
शब्दों का दोहरा दाय है --
१ रवायतन अर्थ को बताना ,और
२ वक्ता के नए अर्थ को समेटना |
दोनों की कशमकश में भाषा
स्वरुप-ग्रहण करती है |
हाँ, कविता भी .....
शुक्रिया .......
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना और प्रस्तुति, बधाई ।
यकीनन, शब्द मेरी माँ जैसे हैं...!!!
वाकई शब्दकार के लिये तो शब्द उसकी माँ जैसे होते है
भाव सुन्दर हैं ..शिल्प पर मेहनत की जा सकती थी.
नका हमेशा एक निश्चित
मंतव्य होता है, जब वो हाथ लगा,
सहलाते हुए समझाती हैं, पर मै...
उन मर्यादाओं में मनचाही
उच्छृंखलताएँ कर ही
लिया करता हूँ...|
अपकी रचनाओं पर कमेन्ट करते हुये मुझे अपकी रचना के कद के बराबर शब्द ही नहीं मिलते।सच मे शब्द माँ जैसे ही ही हैं और हम उन से अक्सर खेलते भी हैं और उनसे सीखते भी हैं बहुत सुन्दर रचना है बधाई
शब्द तो ब्रह्म ही हैं प्रखर !
डॉ.श्रीश को शुभकामनायें
maa hi abhivykti deti hai theek shbdo ki tarh
badhiya rachna
भई बड़ी सटीक अनॉलाजी दी है आपने..
..आपकी रिसर्च के लिये शुभकामनाएं
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